कल्पना का उत्सव

 

मैं कल्पना की दुनिया में कभी-कभी जीता हूं। मैं हर उस व्यक्ति की तरह सोचता हूं जो यहां रहता है। यह बात अलग है कि हमारी सोच हर परस्थिति के मुताबिक बदलती है और हम उसे होने से रोक भी नहीं सकते।

लोग कहते हैं कि कल्पनायें अद्भुत होती हैं। मैं मानता हूं उनमें एक अलग तरह का बहाव होता है जो हमें दूसरी दुनिया के आकाश में सैर करा देता है। वे घटनायें सामान्य नहीं कही जा सकतीं क्योंकि उनकी पहचान कुछ बदली हुई होती है। यह संसार है और हम संसार में रहते हैं। उसमें साथ हम जुड़े हैं। हमारा अस्तित्व बिना लोगों के कुछ भी नहीं।

मैं उड़ रहा हूं। अकेला हूं। कुछ नहीं चाहिए। ऐसे ही रहना मेरा मकसद है। सिमट गया हूं, लेकिन बाहें फैला रहा हूं खुले आसमान में। बादलों की नर्म चादर को छू कर अद्भुत एहसास कर रहा हूं। कल्पना यह है, विचारों की कल्पना।

समय चुप है लेकिन उसकी दौड़ जारी है, हमारी तरह। मुस्कान है, विजेता हूं। गति है और जीवन की कलियां सुनहरे कल की आस लिए चारों और हैं।

चमक शर्मा नहीं रही। वह उस्ताद है। चटकीली दोपहर गर्मी से लबालब है। तभी बूंदों की गुनगुनाहट मधुरता के साथ आनंद प्राप्त कर रही है। मिट्टी की महक गजब का उत्साह प्रदान कर रही है। मानो उत्सव हो कोई कल्पनाओं का। वास्तविकता की परछाईं से सामना कौन नहीं करना चाहेगा। उम्मीद के साथ कदमों को गति दे रहा हूं। पैरों की छाप सबूत छोड़ रही है। मंगल है, सुकून है और जीवन का असामान्य रंग जिसकी कल्पना मैंने की।
-harminder singh

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काश ऐसा अब हो पाता!..........दिल मान जाता है ...........मन करता है अकेला चलने का

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