बूंदों की छटपटाहट

एक आहट हुई है। कहीं कुछ टपका है। शायद कुछ टूटकर बिखरा है। हां, बूंद है वह। बूंद गिरी है धरती पर, बिखरकर, टूटकर। एक-एक कण को बारीकी से निहारा मैंने। संगीत था उनमें कोई। बहता चला गया जीवन। लय-ताल की खनक यहां भी चटकी। जिंदगी की कारस्तानी का अंदाज़े बयां यही है-सुरीला और बेजोड़।

गीत मेरे मन से उतरा। इतरायी हुई मिट्टी को शर्म आ गयी। यह अद्भुत है। संग चल रही लहरों पर गोता मैंने भी लगाया। बूंदों की चमक को खोने नहीं दिया। टिकाया माथे पर। बहती रही रेखायें बन आड़ी-तिरछी या इक्सार। मतवाली थीं, मैं मतवाला। मिलन हो गया। संगम सत् था। राग जो भी हो, मंगल जल-जल था।

महक उठी बगिया मेरी। चहक रही कोयल कोई। मद की फुहार में छन कर चटक रहीं बूंदे अनगिनत। संयोग-वियोग साथ। जीवन की चहक जारी थी।

-हरमिन्दर सिंह चाहल

previous posts :

..............................
 ज्ञान की रोशनाई
..............................
जिंदगी की रोशनाई
..............................
..............................
माता-पिता और बच्चे
..............................
 कल्पना का उत्सव
..............................